For those, Who seek Rhythm in their Life

Sunday, October 19, 2014

मैं चला

हर ख़ुशी नाखुश मुझसे, साया गमो का घना,
यह रंज़िशे , यह बंदिशें, हैं कर रही मुझको फ़ना। 

न किरण-ऐ-उम्मीद यहाँ, न चट्टान-ऐ-हौसला,
 सूना-सूना,खाली-खाली, मैं और मेरा घोंसला। 

चल रहा हूँ बेबस मुसाफिर, न मंज़िल पता न रास्ता,
बस झलक दिखा मुझे, खुद तुझे खुद का वास्ता। 

फर्क भूल गया हूँ मैं, सुबह और शाम के बीच का,
न जाने कब साँसे रुके, और थम जाए यह समां। 

जो हो गया, सो हो गया, ज़िन्दगी तुझसे नही गिला,
थाम मौत का हाथ मैं, ऐ 'नादान' अब मैं चला।  


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