For those, Who seek Rhythm in their Life

Saturday, October 18, 2014

घाट एक ही जहाँ का

मर रहा हूँ हर वक़्त दर बदर, इम्तिहान हैं मेरी इन्तिहाँ का,
सपनो में उभर आता हैं कभी-कभी, घाट एक ही जहाँ का। 

साथ हैं मेरे यार-दोस्त, हर शाम महफ़िल जमती हैं,
पर हैं एक सूनापन सा कही, इंतज़ार हैं बस फ़ना का। 

एक अदद को दी मैंने  कसम,  ज़िंदा रखना मुझे कलम से,
वरना मरने के बाद कौन याद करेगा, इस ज़र्ज़र मकाँ का। 

देखता हूँ हर शाम रात, खिड़की  से अपनी झाँक कर,
बह रहा हैं एक खामोश दरिया, छोड़ के दामन जहाँ का। 

बस अब न रोकना मुझे, जाने दे  मुझे ऐ 'नादान',
इंतज़ार करती हैं माँ मेरी, जहा हैं घाट एक ही जहाँ का। 

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