छलक पड़ते हैं आंसू भी अब, जब याद वो मंज़र आते हैं,
खेत खलिहान, फूल पौधे' भी अब, शमशान से नज़र आते हैं।
रुकी-रुकी सी हैं यह फिज़ाएँ, ठहरा सा हैं यह आसमां,
पर इस दिल में कभी कभी, उसकी याद के बवंडर आते हैं।
नही रहा कोई भी इस दुनिया मैं मेरा, इस दर्द के सिवा,
मरहम लगाने के लिए कभी कभी,खामोश समुन्दर आते हैं।
जा भी नही सकता, न ठहर सकता हूँ यहाँ,
रात को सोता भी नही हूँ, सपने भी भयंकर आते हैं।
पर सुन ले ऐ 'नादान' , नही मान सकता हुँ मैं हार,
मेरी होसला अफ़ज़ाही के लिए खुद, मुक्कदर क सिकंदर आते हैं।
खेत खलिहान, फूल पौधे' भी अब, शमशान से नज़र आते हैं।
रुकी-रुकी सी हैं यह फिज़ाएँ, ठहरा सा हैं यह आसमां,
पर इस दिल में कभी कभी, उसकी याद के बवंडर आते हैं।
नही रहा कोई भी इस दुनिया मैं मेरा, इस दर्द के सिवा,
मरहम लगाने के लिए कभी कभी,खामोश समुन्दर आते हैं।
जा भी नही सकता, न ठहर सकता हूँ यहाँ,
रात को सोता भी नही हूँ, सपने भी भयंकर आते हैं।
पर सुन ले ऐ 'नादान' , नही मान सकता हुँ मैं हार,
मेरी होसला अफ़ज़ाही के लिए खुद, मुक्कदर क सिकंदर आते हैं।
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