सालो से खड़ा हैं,उस गली के मोड़ पर,
बोला नही हैं अब तक…
बस देखता रहता है…।
उधर से गुज़रते लोगो को,
सुनता रहता हैं,उनकी बातो को॥
जाने क्या-क्या सुना होगा??
पर खड़ा हैं आज भी तनकर।
जैसे खुद आज भी श्रेष्ठ हैं
मुझसे,तुमसे और हम सबसे ॥
याद नही,गर झुका हो कभी,
बस बारिश में झूमते देखा हैं।
ललक सी आसमां को छूने की
पर पाँव अब भी जमीन पर है॥
जानता हैं जैसे सबको,
सो ताल्लुक बढ़ाता नही किसी से ।
बच्चो के साथ देखा हैं खेलते,
तो कभी पथिक को पंखा झलते॥
कुछ ऐसा ही हैं .... सालो से खड़ा
उस गली के मोड़ पर... वोह कदम्ब का पेड़ ॥
बोला नही हैं अब तक…
बस देखता रहता है…।
उधर से गुज़रते लोगो को,
सुनता रहता हैं,उनकी बातो को॥
जाने क्या-क्या सुना होगा??
पर खड़ा हैं आज भी तनकर।
जैसे खुद आज भी श्रेष्ठ हैं
मुझसे,तुमसे और हम सबसे ॥
याद नही,गर झुका हो कभी,
बस बारिश में झूमते देखा हैं।
ललक सी आसमां को छूने की
पर पाँव अब भी जमीन पर है॥
जानता हैं जैसे सबको,
सो ताल्लुक बढ़ाता नही किसी से ।
बच्चो के साथ देखा हैं खेलते,
तो कभी पथिक को पंखा झलते॥
कुछ ऐसा ही हैं .... सालो से खड़ा
उस गली के मोड़ पर... वोह कदम्ब का पेड़ ॥
No comments:
Post a Comment