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Sunday, December 28, 2014

मेरी दिल्ली

बरसो बाद मुझे मेरी दिल्ली
महफ़ूज़ लगी। .......
भरे भेडियो के बीच ,में एक नन्ही सी जान
बेख़ौफ़ लगी॥
बरसो बाद.....
हज़ारो मशाले थी जनपथ पर
प्रतिशोध की,न्याय की
इंडिया की मशाल, अमन -ओ-चैन की
बड़ी अच्छी लगी ॥
बरसो बाद…
अनशन पर बैठे लोग,
दिनों-दिन गंवाए
एक भूखे  को मिली रोटी 
दिल को रहत मिली ॥
बरसो बाद। …।
आँखों का पानी जहा सूख ही चूका था,
दामिनी की पुकार पर,
कुछ आँखों में नमी दिखी ,
बरसो बाद......
कभी बुरका,कभी घाघरा,
तो कभी जीन्स टॉप में दिखी ।
आँचल में गरिमा-इतिहास समेटे,

एक नारी का सा ही रूप लगी ॥
बरसो बाद मुझे मेरी दिल्ली,
मेरी सी लगी ।
बढ़ती,सिमटती, आब सी ढलती
मेरा अपना ही रूप लगी ॥ 

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